
नज़र कालज
लधयानह गोरनमनट कालज 1943ء
अे सरज़मीन पाक के यारान नीक नाम
बासद ख़लोस शाार आवारह का सलाम
अे वाद जमील मीरे दिल की धड़कनीं
आदाब कहह रही हैं तरी बारगाह मीं
तो आज भी है मीरे लिये जनत ख़याल
हैं तझ में दफ़न मीरी जवानी के चार साल
कमलाे हैं यहां पह मरी ज़नदगी के फोल
उन रासतों में दफ़न हैं मीरी खुशी के फोल
तीरी नवाज़शों को भलएा न जाे गा
माजी का नक़्शा दिल से मटएा न जाे गा
तीरी नशात ख़ीज़ फ़जाे जवां की ख़ीर
गलहाे रनग व बो के हसीं कारवां की ख़ीर
दोर ख़ज़ां मींभी तरी कलयां खली रहीं
ता हशर यह हसीन फ़जाईं बसी रहीं
हम एक ख़ार थे जो चमन से नकल गे
ननग वतन थेहद वतन से नकल गे
गाे हैं इस फ़जा में वफ़ां के राग भी
नग़मात आतशीं से बखीरी है आग भी
सरकश बने हैं गीत बग़ओत के गाे हीं
बरसों ने निज़ाम के नक़शे बनाे हीं
नग़मह नशात रोह का गएा है बारहा
गीतों मींआनसों को छपएा है बारहा
मासोमयों के जुर्म में बदनाम हम हवे
तीरे तफ़ील मोरद अलज़ाम भी हवे
इस सरज़मीं पह आज हम खाक बार ही सही
दनया हमारे नाम से बीज़ार ही सही
लीकन हम उन फ़जां के पाले हवे तो हीं
गरयां नहींतो यां से नकाले हवे तो हीं
This poem is taken from SahirLudhianvi's Poetry Collection Talkhiya you will read all poems of this collection on this blog.
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