
ग़ज़ल
दीखा तो था यों ही किसी ग़फ़लत शाार ने
दयवानह कर दिया दल बे अख़तयार ने
अे आरज़ो के धनदले ख़राबो जवाब दो
फर किस की याद आी थी मझ को पकारने
तझ को ख़बर नहीं मगर खाक सादह लोह को
बर्बाद करदिया तरे दो दिन के पयार ने
में और तुम से तरक महबत की आरज़ो
दयवानह कर दिया है ग़म रोज़गार ने
अब अे दल तबाह तरा कया ख़याल हे
हम तो चले थेकाकल गीती सनवारने
There are some typing mistakes so kindly ignor it
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