ग़ज़ल
महबत तरक की में ने गरीबां सी लिया में ने
ज़माने अब तो ख़ोश हो ज़हर यह भी पी लिया में ने
अभी ज़नदह हों लीकन सोचता रहता हों ख़लोत मीं
कि अब तक किस तमना के सहारे जी लिया में ने
उन्हें अपना नहीं सकता मगर अतना भी कया कम हे
कि कुछ मदत हसीं ख़वाबों में खो कर जी लिया में ने
बस अब तो दामन दिल छोड़ दो बीकार अमीदो
बहत दख सहह लिये में ने बहत दिन जी लिया में ने
महबत तरक की में ने गरीबां सी लिया में ने
ज़माने अब तो ख़ोश हो ज़हर यह भी पी लिया में ने
अभी ज़नदह हों लीकन सोचता रहता हों ख़लोत मीं
कि अब तक किस तमना के सहारे जी लिया में ने
उन्हें अपना नहीं सकता मगर अतना भी कया कम हे
कि कुछ मदत हसीं ख़वाबों में खो कर जी लिया में ने
बस अब तो दामन दिल छोड़ दो बीकार अमीदो
बहत दख सहह लिये में ने बहत दिन जी लिया में ने
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