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Saturday, June 13, 2009

Khana Aabadi Urdu Poem by Sahir Ludhianvi in Hidni

ख़ानह आबादी



एक दोस्त की शादी पर



तराने गोनज अठे हैं फ़जा में शादयानों के

हवा है अतर आगीं ज़रह ज़रह मसकराता हे



मगर दूर एक अफ़सरदह मकां में सरद बसतर पर

कोई दिल है कि हर आहट पह यों ही चोनक जाता हे



मरी आँखों में आनसो आगे नादीदह आँखों के

मरे दिल में कोई ग़मगीन नग़मह सरसराता हे



यह रसम अनक़ताा अहद अलफ़त यह हयात नो

महबत रो रही है और तमदन मसकराता हे



यह शादी ख़ानह आबादी हो मीरे महतरम भाई

मबारक कहह नहीं सकता मरा दिल कानप जाताहे

 
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