अहद गुम गशतह की तसवीर दखाती कयों हो
एक आवार मनज़ल को सताती कयों हो
वह हसीं अहद जो शरमनद एफ़ा न हवा
इस हसीं अहद का मफ़होम जताती कयों हो
ज़नदगी शाल बे बाक बन लो अपनी
ख़ोद को ख़ाकसतर ख़ामोश बनाती कयों हो
में तसोफ़ के मराहल का नहीं हों क़ाल
मीरी तसवीर पह तुम फूल चड़ाती कयों हो
कौन कहता है कि आहीं हैं मसाब का अलाज
जान को अपनी अबस रोग लगाती कयों हो
एक सरकश से महबत की तमना रख कर
ख़ोद को आीन के फनदों में फनसाती कयों हो
में समझता हों तक़दस को तमदन का फ़रीब
तुम रसोमात को एमान बनाती कयों हो
जब तमहीं मझ से ज़यादह है ज़माने का ख़याल
फर मरी याद में यों अशक बहाती कयों हो
तुम में हमत है तो दनया से बग़ओत कर दो
वरनह म बाप जहां कहते हैं शादी कर लो
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Via chitthajagat.in
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