
एक वाक़ाह
अनधयारी रात के आनगन में यह सुबह के क़दमों की आहट
यह भीगी भीगी सरद हवा यह हलकी हलकी धनदलाहट
गाड़ी में हों तनहा महो सफ़र और नीनद नहीं है आँखों मीं
भोले बसरे अरमानों के ख़वाबों की ज़मीं है आँखों मीं
अगले दिन हाथ हलाते हैं बछली पीतीं याद आती हीं
गुम गशतह ख़ोशयां आँखों में आनसो बन कर लहराती हीं
सीने के वीरां गोशों में एक ठीस सी करोट लीती हे
नाकाम अमनगीं रोती हीं अमीद सहारे दीती हे
वह राहीं ज़हन में घोमती हैं जिन राहों से आज आया हों
कतनी अमीद से पहनचा था कतनी मएोसी लएा हों
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Via chitthajagat.in

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