Saturday, June 13, 2009

Khana Aabadi Urdu Poem by Sahir Ludhianvi in Hidni

ख़ानह आबादी



एक दोस्त की शादी पर



तराने गोनज अठे हैं फ़जा में शादयानों के

हवा है अतर आगीं ज़रह ज़रह मसकराता हे



मगर दूर एक अफ़सरदह मकां में सरद बसतर पर

कोई दिल है कि हर आहट पह यों ही चोनक जाता हे



मरी आँखों में आनसो आगे नादीदह आँखों के

मरे दिल में कोई ग़मगीन नग़मह सरसराता हे



यह रसम अनक़ताा अहद अलफ़त यह हयात नो

महबत रो रही है और तमदन मसकराता हे



यह शादी ख़ानह आबादी हो मीरे महतरम भाई

मबारक कहह नहीं सकता मरा दिल कानप जाताहे

Shahir Ludhianvi's Urdu Poem Mazoori in Hindi

माज़ोरी



ख़लोत व जलोत में तुम मझ से मली हो बारहा

तुम ने कया दीखा नहीं में मसकरा सकता नहीं



मींकह मएोसी मरी फ़तरत में दाखिल हो चकी

जबर भी ख़ोद पर करोंतो गनगना सकता नहीं



मझ में कया दीखा कि तुम अलफ़त का दम भरने लगीं

में तो ख़ोद अपने भी कोई काम आसकता नहीं



रोह अफ़ज़ा हैं जनोन अशक़ के नग़मे मगर

अब में उन गाे हवे गीतों को गासकता नहीं



में ने दीखा है शकसत साज़ अलफ़त का समां

अब किसी तहरीक पर बरबत अठा सकता नहीं



दिल तमहारी शदत अहसास से वाक़फ़ तो हे

अपने अहसासात से दामन छड़ा सकता नहीं



तुम मरी हो कर भी बीगानह ही पा गी मझे

में तमहारा हो के भी तुम में समा सकता नहीं



गाे हैं में ने ख़लोस दिल से भी अलफ़त के गीत

अब रया कारी से भी चाहों तो गा सकता नहीं



किस तरह तुम को बन लों मींशरीक ज़नदगी

मींतो अपनी ज़नदगी का बार अठा सकता नहीं



यास की तारीकयों मीं डोब जाने दो मझे

अब मींशमा आरज़ो की लो बर्ह सकता नहीं



Urdu Ghazal 2 of Sahir Ludhianvi in Hindi





ग़ज़ल



दीखा तो था यों ही किसी ग़फ़लत शाार ने

दयवानह कर दिया दल बे अख़तयार ने



अे आरज़ो के धनदले ख़राबो जवाब दो

फर किस की याद आी थी मझ को पकारने



तझ को ख़बर नहीं मगर खाक सादह लोह को

बर्बाद करदिया तरे दो दिन के पयार ने



में और तुम से तरक महबत की आरज़ो

दयवानह कर दिया है ग़म रोज़गार ने



अब अे दल तबाह तरा कया ख़याल हे

हम तो चले थेकाकल गीती सनवारने


There are some typing mistakes so kindly ignor it


Urdu Poem Nazr e College by Sahir Ludhianvi in Hindi






नज़र कालज



लधयानह गोरनमनट कालज 1943ء



अे सरज़मीन पाक के यारान नीक नाम

बासद ख़लोस शाार आवारह का सलाम



अे वाद जमील मीरे दिल की धड़कनीं

आदाब कहह रही हैं तरी बारगाह मीं



तो आज भी है मीरे लिये जनत ख़याल

हैं तझ में दफ़न मीरी जवानी के चार साल



कमलाे हैं यहां पह मरी ज़नदगी के फोल

उन रासतों में दफ़न हैं मीरी खुशी के फोल



तीरी नवाज़शों को भलएा न जाे गा

माजी का नक़्शा दिल से मटएा न जाे गा



तीरी नशात ख़ीज़ फ़जाे जवां की ख़ीर

गलहाे रनग व बो के हसीं कारवां की ख़ीर



दोर ख़ज़ां मींभी तरी कलयां खली रहीं

ता हशर यह हसीन फ़जाईं बसी रहीं



हम एक ख़ार थे जो चमन से नकल गे

ननग वतन थेहद वतन से नकल गे



गाे हैं इस फ़जा में वफ़ां के राग भी

नग़मात आतशीं से बखीरी है आग भी



सरकश बने हैं गीत बग़ओत के गाे हीं

बरसों ने निज़ाम के नक़शे बनाे हीं



नग़मह नशात रोह का गएा है बारहा

गीतों मींआनसों को छपएा है बारहा



मासोमयों के जुर्म में बदनाम हम हवे

तीरे तफ़ील मोरद अलज़ाम भी हवे



इस सरज़मीं पह आज हम खाक बार ही सही

दनया हमारे नाम से बीज़ार ही सही



लीकन हम उन फ़जां के पाले हवे तो हीं

गरयां नहींतो यां से नकाले हवे तो हीं


This poem is taken from SahirLudhianvi's Poetry Collection Talkhiya you will read all poems of this collection on this blog.


Sahir Ludhianvi's Urdu Poem Shahakar in Hindi

शाहकार



मसोर में तरा शहकार वापिस करने आया हों







अब उन रनगीन रख़सारों में थोड़ी ज़रदयां भरदे

हजाब आलोद नज़रों में ज़रा बे बाकयां भर दे



लबों की भीगी भीगी सलोटों कोमजमहल करदे

नमएां रनग पीशानी पह अकस सोज़ दिल कर दे



तबसम आफ़रीं चहरे में कुछ सनजीदह पन भर दे

जवां सीने की मख़रोती अठानीं सरनगों कर दे



घने बालों को कम करदे मगर रख़शनदगी दे दे

नज़र से तमकनत ले करमज़ाक़ अाजज़ी दे दे



मगर हां बनच के बदले असे सोफ़े पह बठला दे

यहां मीरी बजाे खाक चमकती कार दखला दे
contact:-0322338918

Ghazal of Sahir Ludhianvi in Hindi

ग़ज़ल



महबत तरक की में ने गरीबां सी लिया में ने

ज़माने अब तो ख़ोश हो ज़हर यह भी पी लिया में ने



अभी ज़नदह हों लीकन सोचता रहता हों ख़लोत मीं

कि अब तक किस तमना के सहारे जी लिया में ने



उन्हें अपना नहीं सकता मगर अतना भी कया कम हे

कि कुछ मदत हसीं ख़वाबों में खो कर जी लिया में ने



बस अब तो दामन दिल छोड़ दो बीकार अमीदो

बहत दख सहह लिये में ने बहत दिन जी लिया में ने


Sahir Ludhianvi's Urdu Poem Yaksooi in Hindi

यकसवी



अहद गुम गशतह की तसवीर दखाती कयों हो

एक आवार मनज़ल को सताती कयों हो



वह हसीं अहद जो शरमनद एफ़ा न हवा

इस हसीं अहद का मफ़होम जताती कयों हो



ज़नदगी शाल बे बाक बन लो अपनी

ख़ोद को ख़ाकसतर ख़ामोश बनाती कयों हो



में तसोफ़ के मराहल का नहीं हों क़ाल

मीरी तसवीर पह तुम फूल चड़ाती कयों हो



कौन कहता है कि आहीं हैं मसाब का अलाज

जान को अपनी अबस रोग लगाती कयों हो



एक सरकश से महबत की तमना रख कर

ख़ोद को आीन के फनदों में फनसाती कयों हो



में समझता हों तक़दस को तमदन का फ़रीब

तुम रसोमात को एमान बनाती कयों हो



जब तमहीं मझ से ज़यादह है ज़माने का ख़याल

फर मरी याद में यों अशक बहाती कयों हो



तुम में हमत है तो दनया से बग़ओत कर दो

वरनह म बाप जहां कहते हैं शादी कर लो

Poem of Sahir Ludhianvi Ek Wakea in Hindi









एक वाक़ाह



अनधयारी रात के आनगन में यह सुबह के क़दमों की आहट

यह भीगी भीगी सरद हवा यह हलकी हलकी धनदलाहट



गाड़ी में हों तनहा महो सफ़र और नीनद नहीं है आँखों मीं

भोले बसरे अरमानों के ख़वाबों की ज़मीं है आँखों मीं



अगले दिन हाथ हलाते हैं बछली पीतीं याद आती हीं

गुम गशतह ख़ोशयां आँखों में आनसो बन कर लहराती हीं



सीने के वीरां गोशों में एक ठीस सी करोट लीती हे

नाकाम अमनगीं रोती हीं अमीद सहारे दीती हे



वह राहीं ज़हन में घोमती हैं जिन राहों से आज आया हों

कतनी अमीद से पहनचा था कतनी मएोसी लएा हों







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